Hydrogen Train: अब चलेगी बिना डीजल-बिजली के ट्रेन, भारतीय रेलवे का ग्रीन मिशन शुरू

Hydrogen Train: भारतीय रेलवे ने स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में एक बड़ी छलांग लगाई है। अब वह दिन दूर नहीं जब भारत की पटरियों पर बिना बिजली और डीजल के, हाइड्रोजन से चलने वाली ट्रेनें दौड़ती नजर आएंगी। हाल ही में चेन्नई की इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (ICF) में देश की पहली हाइड्रोजन पावर्ड ट्रेन का सफल परीक्षण हुआ है, जिसे रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने ऐतिहासिक उपलब्धि बताया। यह कदम भारत को जर्मनी, फ्रांस, चीन और ब्रिटेन जैसे उन चुनिंदा देशों की कतार में ला खड़ा करता है, जो पहले ही इस तकनीक को अपना चुके हैं।

हाइड्रोजन ट्रेन की तकनीक: कैसे करती है काम?

हाइड्रोजन ट्रेन (Hydrogen Train) एक खास तरह की ट्रेन होती है, जो बिजली या जीवाश्म ईंधन के बजाय हाइड्रोजन गैस (H₂) से चलती है। इस ट्रेन के इंजन में लगे फ्यूल सेल हाइड्रोजन और ऑक्सीजन की रासायनिक प्रतिक्रिया से बिजली पैदा करते हैं, जिससे ट्रेन को ऊर्जा मिलती है। इसके उप-उत्पाद के रूप में केवल पानी और गर्मी निकलती है, जो इसे पूरी तरह स्वच्छ और कार्बन-फ्री बनाता है।

क्यों है हाइड्रोजन ट्रेन बेहतर?

भारत में अब भी कई ट्रेनें डीजल और बिजली से चल रही हैं। हालांकि बिजली से चलने वाली ट्रेनें कम प्रदूषण करती हैं, लेकिन उस बिजली का अधिकांश हिस्सा कोयले जैसे जीवाश्म ईंधनों से उत्पादित होता है, जिससे अप्रत्यक्ष रूप से कार्बन उत्सर्जन होता है। वहीं, हाइड्रोजन ट्रेनें न केवल कार्बन उत्सर्जन को शून्य कर देती हैं, बल्कि यह तकनीक ईंधन की दक्षता के लिहाज से भी काफी उन्नत है।

ICF द्वारा निर्मित ट्रेन: कई रिकॉर्ड अपने नाम

भारत की पहली हाइड्रोजन ट्रेन तकनीकी रूप से काफी उन्नत है:

  • 1600 हॉर्सपावर की क्षमता – यह दुनिया की सबसे शक्तिशाली हाइड्रोजन ट्रेन बनाती है।
  • 2600+ यात्री क्षमता – अब तक किसी भी हाइड्रोजन ट्रेन में सबसे ज्यादा।
  • 10 कोच (2 पावर कार, 8 ट्रेलर कार) – भारत की सबसे लंबी हाइड्रोजन ट्रेन।
  • प्रस्तावित मार्ग – हरियाणा के जींद और सोनीपत के बीच संचालन की योजना।

परियोजना की लागत और योजना

रेल मंत्रालय के अनुसार, ‘Hydrogen for Heritage’ योजना के तहत पहले चरण में 35 हाइड्रोजन ट्रेनें चलाने का लक्ष्य है। एक ट्रेन को तैयार करने में लगभग ₹80 करोड़ का खर्च आता है, जबकि संबंधित इंफ्रास्ट्रक्चर पर ₹70 करोड़ और खर्च होने का अनुमान है। इसके अलावा DEMU ट्रेनों को भी हाइड्रोजन फ्यूल सेल में बदला जा रहा है, जिन पर ₹111.83 करोड़ का बजट तय है।

कहां हो रहे हैं Hydrogen Train ट्रायल?

उत्तर भारत में हरियाणा के जींद-सोनीपत मार्ग पर इन ट्रेनों का ट्रायल काफी हद तक सफल रहा है। इसके साथ ही कालका-शिमला मार्ग पर भी परीक्षण की तैयारी है। मुख्य तकनीकी चुनौती यह है कि हाइड्रोजन फ्यूल सेल की ऊर्जा उत्पादन क्षमता को और बढ़ाया जाए ताकि माइलेज और गति दोनों बेहतर हो सकें।

भारत के साथ कौन-कौन से देश हैं इस दौड़ में?

भारत से पहले जर्मनी, फ्रांस, चीन, ब्रिटेन और स्विट्जरलैंड हाइड्रोजन ट्रेनों का संचालन कर रहे हैं। इनमें जर्मनी 2018 से ही वाणिज्यिक स्तर पर इन ट्रेनों को चला रहा है। स्विट्जरलैंड की हाइड्रोजन ट्रेन ने 2803 किमी की दूरी तय कर गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में जगह बनाई है। वहीं चीन और ब्रिटेन में इस तकनीक को ट्रेनों में पहले से ही अपनाया जा चुका है।

भारत का हरित भविष्य

हाइड्रोजन ट्रेन भारतीय रेलवे को न केवल पर्यावरण के अनुकूल बनाएगी, बल्कि वैश्विक मंच पर तकनीकी सशक्तिकरण का प्रतीक भी बनेगी। यह न केवल प्रदूषण को घटाएगी, बल्कि दीर्घकालिक रूप से ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में भी अहम कदम है। जब यह ट्रेनें भारतीय पटरियों पर दौड़ेंगी, तो यह भारत के हरित भविष्य की ओर बढ़ते कदम का मजबूत संकेत होंगी।

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