Dayalpur Railway Station: जहां हर दिन बिकते हैं टिकट, लेकिन कोई नहीं करता सफर

Dayalpur Railway Station: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले में स्थित दयालपुर रेलवे स्टेशन आज एक अनोखी वजह से चर्चा का केंद्र बना हुआ है। यह स्टेशन अपनी सामान्य दिनचर्या से बिल्कुल अलग कहानी बयां करता है – यहां के लोग हर दिन टिकट तो खरीदते हैं, लेकिन ट्रेन में सफर नहीं करते। वजह जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे। दरअसल, यह एक ऐसा प्रयास है, जिससे ग्रामीण अपने स्टेशन को हमेशा के लिए बंद होने से बचा रहे हैं।

नेहरू और शास्त्री की देन था यह स्टेशन

इस स्टेशन का इतिहास बेहद खास है। बताया जाता है कि दयालपुर रेलवे स्टेशन की नींव भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की पहल पर रखी गई थी, जिसे तत्कालीन रेल मंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने मूर्त रूप दिया था। यह स्टेशन कई दशकों तक आसपास के गांवों के लोगों के लिए यात्रा का प्रमुख जरिया बना रहा।

स्टेशन के बंद होने की वजह

वर्ष 2016 में भारतीय रेलवे ने कुछ तय मानकों के आधार पर इस स्टेशन को बंद कर दिया था। दरअसल, रेलवे के अनुसार मुख्य लाइन पर स्थित स्टेशनों से कम से कम 50 टिकट प्रतिदिन और ब्रांच लाइन पर 25 टिकट प्रतिदिन की बिक्री होनी चाहिए। दयालपुर स्टेशन इन मानकों को पूरा नहीं कर पाया और रेवेन्यू जनरेशन कम होने के चलते इसे बंद कर दिया गया।

गांववालों का संघर्ष और चमत्कारी वापसी

दयालपुर स्टेशन के बंद होते ही गांववालों की तकलीफें बढ़ गईं। यह केवल एक ट्रांसपोर्ट का जरिया नहीं, बल्कि गांव की “इज्जत” और पहचान भी था। ग्रामीणों ने कई बार रेल मंत्रालय से स्टेशन को पुनः चालू करने की मांग की। आखिरकार, वर्ष 2022 में स्टेशन को ‘हॉल्ट’ के रूप में फिर से खोला गया, जिसमें अब केवल 1-2 ट्रेनें रुकती हैं।

टिकट खरीदकर बचा रहे हैं स्टेशन की पहचान

इस स्टेशन की अनोखी कहानी यहीं खत्म नहीं होती। गांव के लोग अब खुद चंदा इकट्ठा करके हर दिन 25 टिकट खरीदते हैं, ताकि स्टेशन के न्यूनतम टिकट बिक्री का लक्ष्य पूरा हो सके और रेलवे इसे दोबारा बंद न कर दे। दिलचस्प बात यह है कि टिकट खरीदने के बाद वे ट्रेन में चढ़ते नहीं, बल्कि बस स्टेशन की मौजूदगी सुनिश्चित करने के लिए ये कदम उठाते हैं।

गाय-भैंसों का डेरा, लेकिन उम्मीद अभी बाकी

आज भी दयालपुर स्टेशन की हालत बदहाल है। टिकट काउंटर और स्टेशन मास्टर का कमरा खंडहर बन चुके हैं। प्लेटफॉर्म वीरान है और वहां गाय-भैंसें घूमती नजर आती हैं। लेकिन गांववालों की आखिरी उम्मीद अब भी जिंदा है। वे चाहते हैं कि सरकार प्रयागराज जैसी प्रमुख गाड़ियों का स्टॉपेज यहां शुरू करे, ताकि स्टेशन की रौनक फिर से लौट आए।

Dayalpur Railway Station: एक मिसाल

दयालपुर स्टेशन सिर्फ एक ट्रैक या प्लेटफॉर्म नहीं, यह गांव के आत्मसम्मान और जुझारूपन की कहानी है। जब सरकारी तंत्र ने हार मान ली, तब गांववालों ने अपनी सूझबूझ और एकजुटता से इस स्टेशन को जिन्दा रखा। यह कहानी आज भारत के हजारों छोटे स्टेशनों और कस्बों के लिए एक प्रेरणा है

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